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अच्छा फिरोर सारी साहीबा, कैसा लगा तुम्हें लड़का?
अरे जीज़ा क्या बताओं इतना फुद्धू लगा, जमा भी बिलकुल भी उसके अंदर है नहीं कुछ भी.
कैसी कैसी बाते कर रहा था, मैं तो सोच सोच के हरान थी.
इतना सच सवर के गई, मैं इतना अच्छा बन के गई, पर वो है कि थरकी साला, थरकी भी नहीं, थरकी होता तो अच्छी बात थी, थरकी तो था ही नहीं, इतना शरीफ, ऐसा तो मुझे बिलकुल भी नहीं चाहिए था.
अरे सही बता हूँ, मैं भी यही सोच रहा था, मेरे को लगा तो चूटिया, पर मैं गए चलो, एक बारी पूच लेता हूँ तुमसे, कि अगर तुमें अच्छा लगा, तो मैं ने कहा कोई बात नहीं, हमें तो कोई प्रॉलम नहीं होगी.